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समाज

महिलाओं की मदद करती नारी अदालतें

फैसल फरीद
२७ अप्रैल २०१८

महिलाओं के साथ होने वाले अपराधों के मामले में उत्तर प्रदेश की हालत सबसे ज्यादा खराब है. क्या नारी अदालतें कानूनी और सामाजिक बदलाव ला सकेंगी.

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Frauengericht in Indien
तस्वीर: DW/M. Samakhya

वर्तमान में भारत में रेप और महिलाओं से जुड़े अपराधो की बाढ़ आ गई हैं. कई घटनाएं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर, जैसे कठुआ और उन्नाव के रेप केस, छाई हैं. लोगो में आक्रोश हैं. हर तरफ से ये मांग उठ रही है कि न्याय व्यवस्था ऐसी करी जाये कि इन घटनाओ के दोषी को सख्त से सख्त सजा जल्द से जल्द दी जाए.  महिलाओं के प्रति सिर्फ रेप ही नहीं बल्कि और भी बहुत से अपराध होते रहते हैं. जैसे घरेलू हिंसा, जायदाद में हिस्सा न देना, छेड़छाड़, मार पीट, पीछा करना, घूरना इत्यादि. ज्यादातर मामले सामने नहीं आ पाते और महिलाये इसे अपनी नियति मान कर सह लेती हैं.

नेशनल क्राइम रिकार्ड्स ब्यूरो की रिपोर्ट के अनुसार भारत में महिलाओं के प्रति अपराध की संख्या काफी हैं. वर्ष 2014 में पूरे देश में 3,39,457 मामले दर्ज हुए, वर्ष 2015 में 3,29,243 और 2016 में 3,38,954  मामले सामने आए. उत्तर प्रदेश इन तीनों वर्षो में सबसे ज्यादा महिलाओं के प्रति अपराध के मामले सामने आए.

वर्ष 2014 में 38,918, 2015 में 35,908 और 2016 में ये संख्या बढ़ कर 49,262 हो गई.  लेकिन उत्तर प्रदेश में मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा संचालित महिला सामाख्या द्वारा ब्लॉक लेवल पर नारी अदालत की स्थापना करके पीड़ित महिलाओं को त्वरित न्याय दिलवाने की तरफ एक कदम उठाया गया है. यहां पर पीड़ित महिलाओं को तुरंत मदद दी जाती हैं.  इस वजह से गांव में और दूसरे पिछड़े इलाकों की तमाम घटनाएं जहां पर कोई कार्रवाई नहीं होती थी, वो अब सामने आ रही हैं.

Frauengericht in Indien
नए इलाकों तक पहुंची नारी अदालतेंतस्वीर: DW/M. Samakhya

नारी अदालत क्या है

उत्तर प्रदेश के 36 जिलों में 150  नारी अदालत संचालित होती हैं.  इसमें से 100 से ज्यादा पिछले दो साल में स्थापित हुई हैं जिससे इनका महत्त्व समझ में आता हैं. पहली नारी अदालत 1994 में सहारनपुर में स्थापित की गयी थी. ये अदालतें कोई न्यायिक व्यवस्था के अंतर्गत नहीं स्थापित की गयी थी. महिला सामाख्या की स्टेट प्रोजेक्ट डायरेक्टर डॉ स्मृति सिंह के अनुसार नारी अदालत की स्थापना नैसर्गिक तौर पर महिलाओं की मांग पर की गई थी. इसमें कुछ महिलाएं जो केस हैंडल करती हैं वो रहती हैं. इनको महिला सामाख्या द्वारा ट्रेनिंग दी जाती हैं. ताज्जुब करेंगे कि इनमें से कुछ महिलाएं निरक्षर भी हैं लेकिन अपने अधिकारों के प्रति वो सजग हैं. पीड़ित महिला इनको अपनी अर्जी देती हैं. वो इस पर कार्यवाही करती हैं. ये महिलाएं आमतौर पर विकास खंड के कार्यालय में पंद्रह दिन में एक बार बैठक करती हैं.

नारी अदालत कैसे काम करती हैं

डॉ स्मृति के अनुसार पहले पीड़ित महिला नारी अदालत में अपनी बात बताती है. उसके बात उसको ये सब लिख कर अर्जी देनी होती है. एक रजिस्टर मेन्टेन होता है.  केस नंबर दिया जाता है और कार्यवाही शुरू होती है. दूसरे पक्ष को बुलाया जाता है. अगर बातचीत से मामला सुलझ गया तो बाकायदा लिखा पढ़ी में समझौता होता है. वरना नारी अदालत अपने स्तर से जाकर पीड़ित महिला की तरफ से पुलिस केस रजिस्टर कराती है और प्रशासन से मिल कर कार्यवाही भी करवाती है. डॉ स्मृति के अनुसार उच्च न्यायलय ने भी नारी अदालत के रिकार्ड्स और लिखा पढ़ी के दस्तावेज को एक केस में सबूत के तौर पर माना है. नारी अदालत की महिलाओं को स्थानीय समर्थन और मान्यता मिलती है. ये फैक्ट फाइंडिंग भी करती हैं. इनका नेटवर्क बहुत मजबूत होता हैं.  दूसरा पक्ष इनको नजरअंदाज नहीं कर सकता है.

कई बहुत जटिल मामले इन नारी अदालतों की वजह से सामने आए हैं. जैसे सीतापुर में शौच को गई एक लड़की की वहां के प्रधान के लड़के ने हत्या कर दी. मामला रफा दफा हो जाता लेकिन बात नारी अदालत तक पहुंची. कागजी कार्यवाही पूरी करके सबूतों के साथ पुलिस के अधिकारियों से वे मिलीं और गिरफ्तारी भी हुई और बंदूक भी बरामद हुई.  इसी प्रकार जौनपुर में एक व्यक्ति ने अपनी बहू के साथ बलात्कार किया, मामला संगीन हो गया लेकिन नारी अदालत की महिलाओं ने मोर्चा लिया और बाकायदा केस रजिस्टर करने के बाद पुलिस की मदद से कार्रवाई करवाई.

डॉ स्मृति के अनुसार नारी अदालत इस वजह से और महत्वपूर्ण है क्योंकि ये सिर्फ न्याय ही नहीं करती हैं बल्कि उसके बाद सोशल सपोर्ट भी देती हैं. जैसे किसी बलात्कार पीड़िता का जब बहिष्कार हो या उसको गांव वाले नजरअंदाज करें तब ये महिलाएं उसके घर पर रुकती हैं. पीड़ित महिला को हिम्मत देने के लिए उसके साथ गांव में रहती हैं. समाज में इन महिलाओं का बहुत मान दान है इसीलिए तमाम गांव वाले भी इनकी बात मानते हैं. जैसे जौनपुर वाले केस में पीड़ित महिला का न्याय मिला और उसको वापस अपने घर में पति के साथ रहने में नारी अदालत ने भूमिका निभाई.

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तस्वीर: DW/M. Samakhya

कैसे केस आते हैं

महिलाओं से जुड़े सभी केस जैसे रेप, छेड़छाड़, घरेलू हिंसा, पति द्वारा घर से निकालना, बेटी होने पर अत्याचार होना, जायदाद से बेदखल करना, आभूषण छीन कर रख लेना, सेक्सुअल वायलेंस इत्यादि.  नारी अदालतें दूसरे पक्ष से बात कर और उस पर सामाजिक दबाव बना मामले हल करने की कोशिश करती हैं. जो केस पुलिस के पास जाने चाहिए ये वो सारे केस दर्ज करवाती हैं. उसके बाद उसकी पैरवी करती हैं और केस की निष्पक्ष जांच करवाती हैं. जिले के प्रशासनिक और पुलिस अधिकारी इनकी बात को गौर से सुनते हैं. डॉ स्मृति के अनुसार इनके पास वैसे कुछ न हो लेकिन नारी अदालत के पास सोशल पॉवर बहुत हैं जो सबसे जरूरी है वरना अगर सजा मिलने के बाद भी पीड़िता का गांव में रहना मुश्किल हो तो न्याय का क्या फायदा. नारी अदालत इस बात को सुनिश्चित करती हैं कि सारे मामलों में फैसले के बाद पीड़िता आराम से सम्मान के साथ अपने घर पर रहे और उसको सामाजिक मान्यता मिले, ये बात शायद पूरी मशीनरी भी न करवा सकी थी.

कितने केस आते हैं

सन 1994 से अब तक 50 हजार से ज्यादा मामले आ चुके हैं और नारी अदालत 12,480 केसों में फैसला कर चुकी है. कोई फीस नहीं ली जाती है और अब मामलों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है इसीलिए नारी अदालत की महिलाएं अपनी मीटिंग्स की संख्या भी बढ़ा रही हैं.