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चीन के बिना डिजिटल भविष्य का सपना

डांग युआन
२८ अप्रैल २०२४

जर्मनी चीन पर निर्भरता कम करना चाहता है लेकिन डिजिटल तकनीक के मामले में चीन की मजबूत स्थिति देखते हुए यह मुश्किल लगता है.

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Symbolbild Rechenzentrum
तस्वीर: Long Wei/Costfoto/picture alliance

जर्मनी के हैनोवर मेसे में लगने वाला दुनिया का सबसे बड़ा ट्रेड फेयर कई मायनों में ट्रेंड तय करता है. शुक्रवार को खत्म हुए इस मेले में उद्योग जगत के भविष्य और जबरदस्त नई तकनीकों की झलक दिखती है.

इस बार चीन से बड़ी संख्या में हिस्सेदारी के लिए आए प्रदर्शकों ने जता दिया कि डिजिटल भविष्य चीन के बिना मुमकिन नहीं है. इस साल चीन से कुल 4000 कंपनियों ने हिस्सेदारी की और हर तीन में से एक प्रदर्शक चीनी था.

यह स्थिति तब है जब जर्मनी चीन के लिए अपनी रणनीति में लगातार चीन को अपना साझेदार और प्रतियोगी कहने के साथ-साथ कई स्तरों पर प्रतिद्वंद्वी भी बताता रहा है. प्रदर्शनी में बॉल बेयरिंग का स्टाल लेकर आए एक चीनी प्रतिभागी ज्यांग ने डीडब्ल्यू से कहा, "मुझे जर्मनी की स्थिति का पता नहीं है. लेकिन उसका कोई मतलब नहीं है. हमें बिजनेस करना चाहते हैं और मेरे उत्पाद अच्छे, सस्ते और बहुत काम के हैं."

कुछ चीनी कंपनियों के प्रतिनिधि शायद वीजा ना मिलने की वजह से यह मौका चूक भी गए. लेकिन चीन की छोटी और मझोली कंपनियां जोश से भरी हैं. हैनोवर मेले में आने से कंपनियों को निर्यात के मौके तलाशने में मदद मिलती है जिससे वह चीन के देसी बाजार में गिरती मांग की पूर्ति कर सकें. ज्यांग को भी यही उम्मीद है कि उन्हें "विदेश से बड़े ऑर्डर मिलेंगे." हालांकि उन्हें मालूम है कि राह आसान नहीं होगी.

हेनोवर मेसे ट्रेड फेयर में चीन के प्रदर्शक
हेनोवर मेसे ट्रेड फेयर में लगभग 4000 चीनी कंपनियों ने हिस्सा लिया.तस्वीर: Jun Yan/Daniel Winter/DW

मेड इन चाइना एआई

चीनी स्टैंड के लोगो पर नारा लिखा था, "मेक थिंग्स बेटर" जो चीन के आत्मविश्वास को रेखांकित करता है. चीनी कंपनियां पूरी दुनिया में कुछ तकनीकी क्षेत्रों में आगे निकल चुकी हैं. चीन के बिना डिजिटलाइजेशन और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की कल्पना भी नहीं की जा सकती. तकनीकी भविष्य इंडस्ट्री 4.0 का है यानी नेटवर्क आधारित उत्पादन और एआई के इस्तेमाल से संसाधनों का ऑटोमेटेड प्रयोग.

भविष्य की फैक्ट्रियां, स्मार्ट फैक्ट्रियां होंगी जिन्हें वायरलेस नेटवर्क और क्लाउड सर्विसेज की जरूरत होगी. इस तरह की सुविधा वाली फैक्ट्री में सारा औद्यौगिक डाटा रियल टाइम में उत्पादन स्थल से सर्वर पर डाटा क्लाउड की मदद से भेजा जाता है.

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस क्लाउड कंप्यूटिंग का इस्तेमाल करके सबसे बेहतर विकल्प चुनता है और मशीनों को काम करने का निर्देश देता है. हैनोवर मेले के उद्घाटन पर पहुंचे ओलाफ शॉल्त्स ने भरोसा जताया कि जर्मनी इतना ताकतवर है कि अपनी आर्थिक सेहत और बेहतरी कायम रख सके और अगले 10, 20 या 30 साल या आगे भी रोजगार पैदा करता रहे. हालांकि शॉल्त्स ने कहा कि यह केवल तकनीकी खोजों के जरिए ही संभव है जिसके लिए जर्मनी और दूसरे कई देशों की कंपनियां में काबिलियत है.

जेन्सेन हुआंग, सीईओ एनवीडिआ
पूरी दुनिया में चीनी कंपनियां में कुछ तकनीकी क्षेत्रों में आगे निकल चुकी हैंतस्वीर: Eric Risberg/AP Photo/picture alliance

बेहद अहम खोजों की जमीन फिलहाल चीन है. हुआवे क्लाउड के उपाध्यक्ष षिकियांग ताओ का कहना है, "हम वैश्वीकरण की वजह से हुई प्रगति से प्रभावित हैं. उदाहरण के लिए जर्मनी में हम अपने औद्योगिक ग्राहकों को डॉयचे टेलिकॉम के जरिए एक विश्वसनीय क्लाउड सर्विस मुहैया करवाते हैं. सिर्फ सहयोग के जरिए ही हम भविष्य में सफल रह सकते हैं." चीन की यह दिग्गज टेलीकॉम कंपनी यूरोप में अपनी क्लाउड सेवाएं लगातार बढ़ाती जा रही है और यूरोपीय ग्राहकों के लिए उसके सर्वर आयरलैंड और तुर्की में लगाए गए हैं.

ताओ के मुताबिक, दुनिया भर में काम कर रहीं 8000 औद्योगिक कंपनियां हुआवे की क्लाउड सेवाएं इस्तेमाल कर रही हैं. इन फर्मों को उनके अंतरराष्ट्रीय साझेदारों से जोड़ने का मतलबहोगा पूरी वैल्यू चेन को डिजिटलाइज करना. लेकिन इस तरह से जोड़ा जाना है वह बिंदु है जिससे जर्मनी को दिक्कत है. हालांकि देश की चीन रणनीति चीन से अलग होने की बात नहीं करती है लेकिन चीन पर आर्थिक निर्भरता कम करने के लिए विविधता और जोखिम कम करने की बात जरूर कहती है. हैनूवर में ही जर्मन चेंबर ऑफ इंडस्ट्री और कॉर्मस के उप-प्रमुख फोल्कर ट्रिअर ने कहा, "हमारे ख्याल से यह समझा जा सकता है कि जर्मनी कुछ बुनियादी उत्पादों और कच्चे माल पर निर्भरता कम करना चाहता है. यह सामान्य व्यावसायिक जरूरत है. यह जोखिम करने के विचार को कुछ बल देता है. चीन में, बौद्धिक संपदा की सुरक्षा और तकनीक का जबरन हस्तांतरण जैसे मसले अब तक एजेंडे से गए नहीं हैं."

चीन और जर्मनी के झंडे
जर्मनी चीन को अपना साझेदार और प्रतियोगी कहने के साथ-साथ कई स्तरों पर प्रतिद्वंद्वी भी बताता रहा हैतस्वीर: Michael Kappeler/dpa/picture alliance

जोखिम कम करने की रणनीति और निवेश

हालांकि निवेश से जुड़े आंकड़े अलग तस्वीर पेश करते हैं. बुंडेसबैंक के मुताबिक, जर्मनी की कंपनियों ने 2023 में चीन में करीब 12 अरब यूरो का निवेश किया है जो अब तक का सबसे बड़ा आंकड़ा है और यह जोखिम कम करने की बातों के बावूजद हुआ.

जर्मन चेंबर्स ऑफ कॉर्मस अब्रॉड ने बिजनेस के माहौल पर एक सर्वे किया जिसमें पता चला कि 54 फीसदी जर्मन कंपनियां चीन में प्रतियोगीबने रहने के लिए वहां निवेश बढ़ाना चाहती हैं. डुसेलडॉर्फ स्थित जर्मन-चाइनीज बिजनेस एसोसिएशन के महानिदेशक थोमास शेलर कहते हैं, "यह दिखाता है कि मौजूदा चुनौतियों के बावजूद, चीनी बाजार के स्थायित्व और संभावनाओं को लेकर अब भी विश्वास बना हुआ है."

चीन में एक कर्मचारी सेमीकंडक्टर फैक्ट्री में काम करता हुआ
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और डिजिटल तकनीक में अहम खोजों की जमीन फिलहाल चीन हैतस्वीर: picture alliance / Chu Baorui / Costfoto

राजनीतिक नियंत्रण और आर्थिक गतिविधियों की उलट तस्वीरों के बावजूद एक दूसरे के लिए जरूरी होना ही इन दोनों अर्थव्यवस्थाओं की गाड़ी खींचने में अहम है. वैश्वीकरण की दौड़ में अब यह वह बिंदु है जहां संभावनाएं वस्तुओं के बजाए सेवाओं के व्यापार में और सबसे ज्यादा सीधे निवेश में हैं. बिजनेस पत्रकार डीटेर बेस्टे के मुताबिक, "सीधे निवेश का मतलब है बाजार के पास और बाजार में, उसी बाजार के लिए उत्पादन. यही ट्रेंड पूरी दुनिया में उभर रहा है, खासकर जर्मनी और चीन के रिश्तों में."

सेलफोन पर काम करता व्यक्ति
चीन के साथ तकनीकी खोजों पर जर्मन साझेदारी की बहस पर जासूसी की खबरों का साया पड़ चुका है.तस्वीर: DW

औद्योगित जासूसी की रिपोर्टें

चीन के साथ तकनीक खोजों पर साझेदारी की बहस पर इसी हफ्ते आई चीनी जासूसी की खबरों का साया पड़ चुका है.

जर्मनी के संघीय अभियोजक कार्यालय ने बीते सोमवार को बताया था कि चीन की खुफिया सेवाओं के लिए काम करने के शक के चलते तीन जर्मन नागरिकों की गिरफ्तारी भी हुई है. वकीलों का मानना है कि यह तीनों ऐसे रिसर्च का हिस्सा हो सकते हैं जिसके जरिए चीन अपनी नौसैनिक ताकत बढ़ाना चाहता है.

ऐसा कहा गया है कि एक संदिग्ध ने ऐसी तकनीकी जानकारी जुटाई है जो सैन्य उद्देश्यों के लिए इस्तेमाल हो सकती है. 1989 में तियाननमेन स्क्वेयर में छात्र आंदोलन को दबाने के लिए हुई हिंसक घटनाओं के बाद यूरोपियन यूनियन ने चीन को हथियार देने पर  रोक लगा रखी है.